उन्नत विधि से मसूर की खेती

कृषि वैज्ञानिकों का ऐसा मानना है कि धान के कटोरे में दलहन की खेती की भी अपार संभावनाएं हैं। दरअसल यहां की मिट्टी दोमट है। इसलिए जिले में दलहन की बेहतर खेती की जा सकती है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि जीरो ट्रिल से मसूर की खेती करने पर बेहतर उत्पादन किया जा सकता है।
-भूमि का चयन
मसूर की खेती के लिए दोमट मिट्टी काफी उपयोगी होती है। नमीयुक्त मटियार खेत में धान की अगैती फसल के बाद या फिर खाली पड़े खेत में मसूर की खेतीबारी आसानी पूर्वक की जा सकती है।
-खेत की तैयारी
कृषि वैज्ञानिक डा. प्रदीप कुमार का कहना है कि मसूर की खेती के लिए बीज की बोआई जीरो टिलेज मशीन से करने के बाद कल्टीवेटर या रोटावेटर से जोताई कर खेत भुरभुरा करना पड़ता है।
- मसूर बोने का समय
दलहन की बोआई के लिए वैसे तो असिंचित क्षेत्र में 15 से 31 अक्टूबर के बीच का समय उपयुक्त माना गया है। ..किन्तु सिंचित इलाकों में इसकी बोआई का समय 15 नवम्बर तक निर्धारित किया गया है।

खेती का चुनाव एवं तैयारीः-
मसूर की खेती के लिए दोमट भारी भूमि बहुत ही उपयुक्त होती है इसके लिए सबसे उत्तम दोमट भूमि होती है मसूर की खेती के लिए सबसे पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिएI इसके पश्चात दो तीन जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करने के पश्चात पाटा लगा कर खेत को समतल तैयार कर कर लेना चाहिएI जिससे की सिचाई करने में कोई असुविधा न होI
ऐस मसूर की खेती सभी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है लेकिन दोमट मिट्टी इसके लिए सबसे उत्तम मानी जाती है। खेत को 2-3 बार देशी हल अथवा कल्टीवेटर से जुताईकर मिट्टी को भूरभूरी बना देते है।

मसूर की खेती के लिए अनुसंसित उन्नत प्रजातियाँ:-

मसूर के खेती के लिए कौन कौन सी प्रमुख प्रजातियाँ हैं?

मसूर की बुवाई की जाने वाली प्रमुख प्रजातियाँ जैसे की पूसा वैभव, आई पी एल81, नरेन्द्र मसूर 1, पन्त मसूर 5, डी पी एल 15 ,के 75 तथा आई पी एल 406 इत्यादि प्रजातियाँ हैंI
छोटे दाने की प्रजातियाँ:-
पंत के 639:- यह प्रजाति 135-140 दिन में तैयार हो जाती है। यह जड़ सड़न एवं उकठा रोग के लिए प्रतिरोधी मानी जाजी है।
पी0एल0 406:- यह प्रभेद 140-145 दिन में तैयार होती है। इसमें रस्ट, बिल्ट एवं अट रोग से लड़ने की क्षमता होती है।
एच0यू0एल0 57:- यह प्रजाति 120-125 दिन में परिपक्व हो जाती है तथा इसमंे भी जड़ सड़न एवं उकठा रोग से लड़ने की क्षमता है।
के0एल0एस0 218:- यह प्रजाति 120-125 दिन में तैयार हो जाती है।


बडे़ दाने वाली प्रजातियाँ:
मसूर की बुवाई की जाने वाली प्रमुख प्रजातियाँ जैसे की पूसा वैभव, आई पी एल८१, नरेन्द्र मसूर १, पन्त मसूर ५, डी पी एल १५ ,के ७५ तथा आई पी एल ४०६ इत्यादि प्रजातियाँ हैंI
पी0एल077-12 (अरूण):- यह प्रभेद 115-120 दिन में परिपक्व हो जाती है रस्ट एवं इकठा रोग से लड़ने की क्षमता होती है।
के0 75 (मल्लिका):- यह 130-135 दिन में तैयार होता है। उकठा रोग के लिए यह प्रतिरोधी मानी जाती है।
के-75 (मल्लिका): यह जाति 115-120 दिन में पकती है। इसकी औसत उपज 10-12 क्विंटल प्रति हेक्‍टेयर है। इसका दाना छोटा होता है, जिसके 100 दानों का वजन 2.6 ग्राम है। यह जाति संपूर्ण विंध्‍य क्षेत्र अर्थात सीहोर, भोपाल, विदिशा, नरसिंहपुर, सागर, दमोह एवं रायसेन आदि जिलों के लिये उपयुक्‍त है।
2. जे.एल.-1: इस जाति की पकने की अवधि 112-118 दिन है तथा औसत उपज 11-13 क्विंटल प्रति हेक्‍टेयर है। इसका दाना मध्‍यम आकार का होता है तथा 100 दानों का वजन 2.8 ग्राम होता है। यह जाति भी संपूर्ण विश्‍व क्षेत्र के लिये उपयुक्‍त है।
3.एल-4076: यह जाति 115-125 दिन में पककर तैयार होती है। इसकी औसत उपज 10-15 क्विंटल प्रति हेक्‍टेयर है। यह उकठा रोग निरोधक है। इसका दाना अपेक्षाकृत बड़े आकार का होता है। 100 दानों का वजन 3.0 ग्राम होता है। यह जाति प्रदेश के सभी क्षेत्रों के लिये उपयुक्‍त है।
4. जे.एल.-3: मध्‍यम अवधि की नई विकसित यह किस्‍म 110-115 दिन में पकती है तथा 14-15 क्विंटल प्रति हेक्‍टेयर उपज देती है। इसका दाना मध्‍यम आकार का होता है। इसके 100 दानों का वजन लगभग 3.0 ग्राम होता है। यह जाति संपूर्ण विंध्‍य क्षेत्र के लिये उपयुक्‍त है।
5. आई.पी.एल.-18 (नूरी): यह किस्‍म 110-115 दिन में पकती है तथा औसत उत्‍पादन 12-14 क्विंटल प्रति हेक्‍टेयर है। मध्‍यम आकार के दानों वाली इस जाति का वजन 3.0 ग्राम है।
6. एल. 9-2: देरी से पकने वाली यह किस्‍म 135-140 दिन में पकती है। इसकी औसत उपज 8-10 क्विंटल प्रति हेक्‍टेयर है। इसके दाने छोटे आकार के होते हैं। यह जाति भिण्‍ड तथा ग्‍वालियर क्षेत्रों के लिये अधिक उपयुक्‍त है।
बीज की मात्रा एवं बोने की विधि: सामान्‍यत: 40 किलोग्राम बीज प्रति हेक्‍टेयर क्षेत्र में बोनी के लिये पर्याप्‍त होता है। बीज का आकार छोटा होने पर यह मात्रा 35 किलोग्राम प्रति हेक्‍टेयर होनी चाहिये। सामान्‍य समय में बुवाई के लिये कतार से कतार की दूरी 30 सेमी. रखना चाहिये। देरी से बुवाई के लिये कतारों की दूरी कम कर 20-25 सेमी. कर देना चाहिए। बुवाई नारी या सीडड्रिल से 5-6 मी. की नमी युक्‍त गहराई पर करना चाहिये।

बुवाई का उचित समयः-

मसूर की उन्नत प्रजातियां को 15 अक्टूबर से 25 नवम्बर के बीज बुवाई कर देनी चाहिए।

फसल की वानस्पतिक वृद्धि के लिए ठंडी जलवायु तथा पकने के समय गर्म जलवायु की आवश्यकता पड़ती हैI फसल के लिए २० डिग्री से ३० डिग्री सेल्सियस तापमान की आवश्यकता होती हैI इस जलवायु में मसूर की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है

बीज की मात्रा एवं बोने की बिधिः-

मसूर की समय से बुवाई करने के लिए ४० से ६० किलोग्राम बीज की मात्रा तथा पछेती बुवाई के लिए ६५ से ८० किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती हैI

मसूर की खेती के लिए बीज उपचार हमें हमें कब और कैसे करना चाहिए?

मसूर की फसल को रोगों से बचाने के लिए बीज को बुवाई से पूर्व २ ग्राम थीरम या ३ ग्राम मैन्कोजेब प्रति किलोग्राम बीज को शोधित करके तथा १० किलोग्राम बीज को २०० ग्राम राइजोवियम कल्चर से उपचारित करके ही बुवाई करनी चाहिएI

मसूर की बीज के बुवाई का सही समय क्या है और वह इसे कैसे करें?

मसूर की बुवाई अक्टूबर के मध्य से नवम्बर के मध्य तक समय बहुत ही अच्छा होता हैI बुवाई के लिए जीरो टिलर सीड ड्रिल लाभप्रद होती हैI

छोट दानो वाले प्रभेदो के लिए एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में बुबाई के लिए 35-40 किलोग्राम बीच की जरूरत पड़ती है। जबकी बड़ेे दानों वालेे किस्मों के लिए 50-55 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बुबाई के समय किस्मों के आधार पर कतार से कतार एवं पौधे से पौधे की दूरी क्रमशः 25 से0मी0 ग् 10 से0मी रखनी चाहिए।

बीजोपचारः-

मसूर की समय से बुवाई करने के लिए 40 से 60 किलोग्राम बीज की मात्रा तथा पछेती बुवाई के लिए 65 से 70 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर की आवश्यकता होती हैI

मसूर की खेती के लिए बीज उपचार हमें हमें कब और कैसे करना चाहिए?

मसूर की फसल को रोगों से बचाने के लिए बीज को बुवाई से पूर्व 2 ग्राम थीरम या 3 ग्राम मैन्कोजेब प्रति किलोग्राम बीज को शोधित करके तथा 10 किलोग्राम बीज को 200 ग्राम राइजोवियम कल्चर से उपचारित करके ही बुवाई करनी चाहिएI

मसूर की बीज के बुवाई का सही समय क्या है और वह इसे कैसे करें?

मसूर की बुवाई अक्टूबर के मध्य से नवम्बर के मध्य तक समय बहुत ही अच्छा होता हैI बुवाई के लिए जीरो टिलर सीड ड्रिल लाभप्रद होती हैI



प्रारम्भिक अवस्था के रोगों से बचाने के लिए बुवाई से पहले मसूर के बीजों को सही उपचार करना जरूरी होता है। इसके लिए ट्राइकोडर्मा विरीडी 5 ग्राम प्रति किलों बीज या कार्बेन्डाजिन 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए। बीजोपचार में सबसे पहले कवकनाशी तत्पश्चात् कीटनाशी एवं सबसे बाद में राजोबियम कल्चर से उपचारित करने का क्रम अनिवार्य होता है।

मसूर की फसल में प्रमुख रोग कौन कौन से हैं, उसका नियंत्रण किस प्रकार से करें?

मसूर की फसल के रोग जैसे की उकठा रोग, गेरुई रोग, ग्रीवा गलन, मूल गलन प्रमुख हैI इस रोग से फसल को बचाने के लिए बुवाई से पूर्व बीज को थीरम नामक रसायन २.५ ग्राम मात्रा या ४ ग्राम ट्राईकोडरमा से प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित करके ही बुवाई करनी चाहिएI फसल को मृदा जनित रोगों जैसे ग्रीवा गलन मूल गलन आदि के बचाव के लिए भूमि में ५ किलो ट्राईकोडरमा पाउडर को गोबर की खाद में मिलाकर मिट्टी में मिला देनी चाहिएI जिससे की रोगों का प्रकोप न हो सकेI

जिन क्षेत्रों में कटुआ यानी कजरा पिल्लू का प्रकोप मसूर के खेत में बढ़ जाता है यहाॅ बीज को क्लोरोपाइरीफास 20 ई0सी0 से (6-8 मि0ली0 प्रति किलोग्राम बीज) उपचार करना चाहिए।

उर्वरकों का प्रयोगः-

मिट्टी परीक्षण के आधार पर ही उर्वरकों का प्रयोग आवश्यतानुसार करना चाहिए। सामान्य परिस्थिति में 20 किलो नेत्रजन, 40 किलोग्राम स्फूर एवं 20 किलोग्राम गंधक प्रति हेक्टेयर उपयोग करना चाहिए। प्रायः असिंचित क्षेत्रों में स्फूर की उपलब्धता घट जाती है। इसके लिए पी एस बी का भी प्रयोग कर सकते है। 4 किलो पी एस बी (जैविक उर्वरक) को 50 किलोग्राम कम्पोस्ट में मिलाकर खेतों मंे बुवाई पूर्व व्यवहार करें। जिन क्षेत्रों में जिंक एवं बोरान की कमी पाई जाती है उन खेतों में 25-30 किलोग्राम जिंक सल्फेट एवं 10 किलोग्राम बोरेक्स पाउडर प्रति हेक्टेयर की दर से बुवाई के समय प्रयोग करना चाहिए।

सिंचाईः-

जिन खेतों के नमी कमी पाई जाती है वहा एक सिंचाई (बुबाई के 45 दिन बाद) अधिक लाभकारी होती है। खेतों में पानी का जमाव नहीं होना चाहिए। इससे फसल प्रभावित हो जाती है। प्रायः टाल क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता नही पड़ती है।

खरपतवार नियत्रणः-

मसूर की फसल के खरपतवार नियत्रण के लिए बुवाई के २० से २५ दिन बाद निराई गुड़ाई करना चाहिए तथा पेंडामेथालिन नामक रसायन की ३.३ लीटर की मात्रा को १००० लीटर पानी में मिलाकर बुवाई के बाद तुरन्त छिडकाव करना चाहिएI जिससे की खरपतवार उग ही न सकेI

मसूर के खेत में प्रायः मोथा, दूब, बथुआ, मिसिया, आक्टा वनप्याजी, बनगाजर आदि खरपतवार का प्रकोप ज्यादा होता है। इसके नियत्रण के लिए 2 लीटर फ्लूक्लोरिन को 600-700 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से अंतिम जूताई के बाद छिटकर मिला दे अथवा पेण्डीमेथीलीन एक किलोग्राम को 1000 लीटर पानी में घोलकर बुवाई के 48 घंटे के अन्दर छिड़काव करना चाहिए।

फसल सुरक्षा प्रबंधनः-

मसूर की फसल में लगने वाले कीट कौन से होते है, उसका नियंत्रण किस तरह से किया जाए?

इस फसल में मुख्यता माहू कीट यह कीट फसल के पत्तियों तथा पौधों के कोमल भागो से रस चूस कर नुकसान पहुचता हैं इसकी रोकथाम के लिए मैलाथियान ५0 ई सी २ लीटर मात्रा या फारमेथियान २५ ई सी की १ लीटर मात्र को ६०० से ८०० लीटर पानी में मिलाकर प्रति हैक्टर की दर से छिडकाव करना चाहिए जिससे की कितो का प्रकोप न हो सके दूसरा है फली वेधक कीट यह कीट फालियो में छेद करके दानो को नष्ट करता है, इसकी रोकथम के लिए फेनबलारेट नामक रसायन ७५० मिलीलीटर मात्रा या मोनोक्रोटोफास की १ लीटर मात्रा को १००० लीटर की दर से छिडकाव करना चाहिएI


रोग प्रबंधनः- मसूर के प्रमुख रोग उकठा, ब्लाइट, बिल्ट एवं ग्रे मोल्ड है। इससे बचाने के लिए फसलों में मेंकोजेब 2 ग्राम लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए।
कीट प्रबंधनः- मसूर के पौधे के उगने के बाद फसल को हमेशा निगरानी रखनी चाहिए जिससे कीड़े का आक्रमण होने पर उचित प्रबंध तकनीक अपनाकर फसल को नुकसान से बचाया जा सके। कजरा पिल्लू, कटवर्म, सूड़ी तथा एफिड कीड़ों को प्रकोप मसूर के पौधे पर ज्यादा होता है। इन कीटो को आर्थिक क्षतिस्तर से नीचे रखने के लिए बुवाई के 25-30 दिन बाद एजैडिरैक्टीन (नीम तेल) 0.03 प्रतिशत 2.5-3.0 मि0ली0 प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करना चाहिए।

कटाई एंव भण्डारणः-

मसूर की फसल की कटाई का सही समय क्या है, और इसके बीजो का भण्डारण किस प्रकार करें?

मसूर की फसल को पूणर्तः पकने के बाद ही कटाई करनी चाहिए, तथा फसल को धुप में सुखाकर मड़ाई करके दाना निकल लेना चाहिएI मसूर को भण्डारण में कीटों केबचाने के लिए एलुमिनियमफास्फाइड की दो गोली प्रति मीट्रिक टन की दर से प्रयोग करेI जिससे भण्डारण में होने वाली कीटों की हानि से मसूर को बचाया जा सकेI

जब 80 प्रतिशत फलिया पक जाऐ तो कटाई करके झड़ाई कर लेना चाहिए। भण्डारण से पूर्ण दानों को अच्छी तरह से सुखा लेना याहिए। अगर किसान लोग उन्नत विधि से मसूर की खेती करेे तो लगभग 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त कर सकते है।

मसूर की फसल से प्रति हैक्टर कितनी उपज प्राप्त की जा सकती है?

मसूर की फसल औसतन उपज २० से २२ कुन्तल प्रति हैक्टर प्राप्त होती है I

- टमाटर और मसूर की खेती साथ-साथ Amar Ujala
www.amarujala.com/news/city/.../Chandauli-145983-5...
टमाटर और मसूर की खेती साथ-साथ. शनिवार, 29 नवंबर 2014. Chandauli. Updated @ 5:30 AM IST. > एंड्रॉएड ऐप पर अमर उजाला पढ़ने के लिए क्लिक करें. अपने फ़ेसबुक पर अमर उजाला की ख़बरें पढ़ना हो तो यहाँ

मसूर की ओरगेनिक खेती | arganikbhagyoday
arganikbhagyoday.blogspot.com/.../blog-post_6102.h...
Sep 10, 2010 - जलवायुमसूर के लिए समशीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है , ऊष्ण - कटिबंधीय व उपोष्ण - कटिबंधीय क्षेत्रों में मसूर शरद ऋतू की फसल के रूप में उगाई है जाती , विभिन्न स्थानों पर विभिन्न प्रकार की जलवायु में मसूर की फसल समुद्री ..


फसल उत्पादन की उन्नत कृषि प्रणाली ...
hi.vikaspedia.in/.../92b938932-90992494d92a93e926...
नाइट्रोजन की बची मात्रा प्रथम सिंचाई (20-25 दिन) के बाद, जब खेत में चलने लायक नमी हो, दें। सिंचित अवस्था में विलम्ब से बोआई ...... अगात खरीफ की फसल एवं धान काटने के बाद मध्यम जमीन मसूर के लिए उपयुक्त है। (ख) बुआई के समय : बुआई के लिए उचित समय .


उन्नत विधि से मसूर की खेती
www.krishisewa.com/cms/.../382-lentil-cultivation.htm...
यह यहाँ की एक बहुप्रचलित एवं लोकप्रिय दलहनी फसल है जिसकी खेती प्रायः सभी जिलों में की जाती है। बिहार राज्य में मसूर की खेती 1.73 लाख हेक्टेयर तथा इसकी औसल उत्पादकता 935 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है। इसकी खेती प्रायः असिंचित क्षेत्रों ...

मसूर की वैज्ञानिक खेती - यूट्यूब
www.youtube.com/watch?v=r7JRz1tPkMU
यह वीडियो मसूर / मसूर की खेती की वैज्ञानिक विधि या तकनीक से पता चलता है।

मसूर की खेती - POP Choices
agropedialabs.iitk.ac.in/pop/pop_choices_masoor.html
Home >> दलहनी फसलें>> मसूर की खेती. परिचय. मसूर रबी की एक प्रमुख दलहनी फसल हैI विश्व में इसकी खेती सर्वाधिक भारत में की जाती हैI उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में मसूर एकल फसल के रूप में उगायी जाती हैI इसमे प्रोटीन प्रचुर मात्रा में ...


जीरो ट्रिल विधि से करें मसूर की खेती 8422967
www.jagran.com/uttar.../chandauli-8422967.html
Oct 31, 2011 - चंदौली : भोजन की थाली में भात (चावल) के साथ दाल जरूरी है, बल्कि यह कह लीजिए कि दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इसलिए यह नितांत आवश्यक है कि धान 8422967.


मसूर - government-of-madhya-pradesh, भारत
mp.gov.in/krishi/masur
मसूर सभी प्रकार की भूम में उगाथ्द्यर्; जा सकती है। कन्तु दोमट और भारी भूम थ्द्य;सके लये धक उपयुक्त है। भूम का पी.एच. मान ६.५ से ७.० के बीच होना चाहये तथा जल नक ास का च्छा प्रबंध होना चाहये। खाली खेतों में ३४ जुताथ्द्यर्; कर खेती च्छी तरह तैयार ...
दिसम्बर के मुख्य खेती-बाड़ी कार्य | agropedia
agropedia.iitk.ac.in/node/29396
Dec 4, 2012 - मसूर की बोआर्इ अभी भी कर सकते है, लेकिन प्रति हेक्टेयर 55 से 75 किग्रा बीज लगेगा। बोआर्इ ... एक हेक्टेयर खेत की रोपार्इ के लिए टमाटर की उन्नत किस्मों की 350-400 ग्राम और संकर किस्मों की 200-250 ग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती हैं।
कृषिका: सेहत और पौष्टिकता में मसहूर दाल ...
krishiguru2013.blogspot.com/2014/10/blog-post.html
Oct 28, 2014 - मसूर की खेती कम वर्षा और विपरीत परस्थितिओं वाली जलवायु में भी सफलतापूर्वक की जा सकती है। ... देशी किस्मो की अपेक्षा उन्नत किस्मो के प्रमाणित बीज का उपयोग करने से अन्य फसलों की तरह मसूर से भी अधिकतम उपज (20 से 25 प्रतिशत ...

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